पद्मश्री बौआ देवी
पद्मश्री बौआ देवी का जन्म 25 दिसम्बर 1942 को मधुबनी जिला (बिहार) के सिमरी, राजनगर गांव में हुआ। शिक्षा पाँचवीं कक्षा तक ही प्राप्त की, लेकिन विवाह (12 वर्ष की आयु में) उपरांत जितवारपुर गाँव आकर उन्होंने परंपरागत मधुबनी पेंटिंग को अपने जीवन का आधार बनाया।
1955-56 में आए अकाल के समय, भारतीय हस्तकला बोर्ड के डिज़ाइनर भास्कर कुलकर्णी ने उन्हें कागज़ पर पेंटिंग करने के लिए प्रेरित किया। मात्र ₹14 में उनकी तीन पेंटिंग खरीदी गईं, जिससे उनके परंपरागत चित्रों को नया आयाम मिला और वे व्यावसायिक मंच पर पहचान बनाने लगीं।
सम्मान एवं उपलब्धियाँ
- 1986 – राष्ट्रीय पुरस्कार (श्रेष्ठ शिल्प – मिथिला चित्रकला), भारत सरकार।
- 2017 – पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित।
पद्मश्री दुलारी देवी
जन्म 27 दिसम्बर 1965 को मधुबनी जिले के रांटी गाँव में हुआ। आर्थिक कठिनाइयों के कारण पढ़ाई पूरी न कर सकीं।
शादी के बाद जीवन और कठिन हुआ, लेकिन संघर्षों के बीच उन्होंने कला की ओर रुख किया।
संघर्ष से सफलता तक
दुलारी देवी ने पहले मशहूर कलाकारों के घर काम किया और वहीं से पेंटिंग सीखना शुरू किया।
पहली पेंटिंग मछुआरे की थी, जिससे मात्र पाँच रुपये कमाए। यही से उनका सफर शुरू हुआ और धीरे-धीरे वह
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने लगीं।
पुरस्कार एवं सम्मान
2021 में पद्मश्री से सम्मानित।
2012-13 में राज्य पुरस्कार प्राप्त।
ललित कला अकादमी और अन्य संस्थाओं से भी अनेक सम्मान मिले।
विशेषज्ञता
मिथिला चित्रकला की भरनी शैली में निपुण।
पद्मश्री शिवन पासवान
मिथिला कला के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हुए उन्होंने गोदना चित्रकला को कैनवास पर जीवंत किया।
उनके चित्रों में जटिल पैटर्न और विस्तारपूर्ण रचनाएँ देखने को मिलती हैं। पारंपरिक गोदना,
जो पहले शरीर पर धार्मिक-सांस्कृतिक कारणों से बनाया जाता था,
उन्होंने उसे आधुनिक कला रूप में विकसित कर अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।
योगदान
उन्होंने मिथिला चित्रकला को संरक्षित और बढ़ावा देने के साथ महिलाओं को रोजगार के माध्यम से सशक्त किया।
परंपरागत विषयों के साथ-साथ उन्होंने नए सामाजिक मुद्दों को भी अपनी पेंटिंग में स्थान दिया।
लोकगाथा और लोकगायन के लिए भी वे आदरणीय हैं।
उपलब्धियाँ
2024 में पद्मश्री से सम्मानित।
2005 में राष्ट्रीय पुरस्कार।
2012 में बिहार कला पुरस्कार (सीता देवी लोक कला सम्मान)।
विशेषज्ञता
गोदना शैली की अद्वितीय विशेषज्ञ।
डा० रानी झा
डा. रानी झा (जन्म: 25 सितम्बर 1962) मिथिला चित्रकला की प्रसिद्ध कलाकार हैं।
उनकी कला में परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम दिखाई देता है।
प्राकृतिक रंगों और हाथ से बने कागज पर कार्य कर उन्होंने इस कला को वैश्विक पहचान दिलाई।
राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों, लेखन और सांस्कृतिक गतिविधियों से उन्होंने
मिथिला कला को नई दिशा दी है।
उपलब्धियाँ
- राज्य पुरस्कार (2017-18) – श्रेष्ठ हस्तशिल्प, मधुबनी पेंटिंग
- ब्रज किशोर सम्मान – 2018, पटना
- प्रशस्ति पत्र – एथनिक आर्ट फाउंडेशन, USA एवं प्रो. सुसान एस. वाडले
- मिथिला रत्न सम्मान – 2016, देवघर
- मिथिला विभूति सम्मान – 2014, दरभंगा
- चेतना समिति सम्मान – 2013, पटना
श्री संजय कुमार जायसवाल
श्री संजय कुमार जायसवाल (जन्म: 07 अगस्त 1969, जयनगर, मधुबनी) मिथिला चित्रकला के प्रमुख कलाकारों में से एक हैं।
वे तांत्रिक चित्र शैली और लाइन पेंटिंग में विशेष योगदान के लिए जाने जाते हैं।
स्वर्गीय श्री कृष्णानंद झा के एकमात्र दीक्षित शिष्य होने के नाते, उन्होंने तंत्र पेंटिंग की परंपरा को आगे बढ़ाया और
“महामृत्युञ्जय” विषयक तंत्र-पेंटिंग के लिए 2016-17 में राज्य पुरस्कार प्राप्त किया।
वर्तमान में वे सौराठ, मधुबनी स्थित मिथिला चित्रकला संस्थान में कनीय आचार्य के रूप में कार्यरत हैं और नई पीढ़ी को कला का मार्गदर्शन दे रहे हैं।
उपलब्धियाँ
- राज्य पुरस्कार – 2016-17, मधुबनी पेंटिंग (उद्योग विभाग, बिहार सरकार)
- कृष्णानंद झा सम्मान – 2018
- Awesome Artist Award – 2016, अग्निपथ, नई दिल्ली
- विशिष्ट सम्मान – 2016, किशोरी कला मंदिर, जयनगर
विशेषज्ञता
- मिथिला चित्रकला की “तंत्रिका चित्र शैली” में विशेषज्ञ
श्री प्रतीक प्रभाकर
श्री प्रतीक प्रभाकर मिथिला चित्रकला के प्रसिद्ध कलाकार हैं, जिनका जन्म 27 दिसम्बर 1983 को मधुबनी, बिहार में हुआ।
इन्होंने विशेष रूप से कचनी शैली पर कार्य किया है। उनकी कला धार्मिक विषयों से आगे बढ़कर समकालीन समाज और
लोकगाथाओं का चित्रण करती है। वे परंपरागत और आधुनिक शिल्प के बीच एक नया संवाद स्थापित करते हैं।
श्री प्रभाकर ने औपचारिक प्रशिक्षण मिथिला आर्ट इंस्टिट्यूट, मधुबनी से लिया तथा भारतीय शिल्प संस्थान, जयपुर से
शिल्प डिजाइन में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। उन्होंने विश्व बैंक-JIYO परियोजना और बिहार संग्रहालय में कला समन्वयक
के रूप में भी योगदान दिया तथा हजारों महिलाओं को कला के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग किया।
मुख्य उपलब्धियाँ
- 2015-16 में मधुबनी पेंटिंग के लिए श्रेष्ठता प्रमाण-पत्र से सम्मानित।
- कचनी शैली में विशेष दक्षता।
- बिहार संग्रहालय और उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान में क्यूरेटर एवं ट्रेनर के रूप में कार्य।
प्रशिक्षण एवं कला अनुभव
- राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिथिला पेंटिंग प्रशिक्षण और कार्यशालाओं का संचालन।
- चिल्ड्रन गैलरी, बिहार संग्रहालय (2015) एवं मुंबई एयरपोर्ट टर्मिनल-2 पर कला स्थापना।
- नेपाल, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में डिजाइन विकास कार्यशालाओं में सहभागिता।